मादा जनन अंग (Female reproductive system)
जैसा कि हम जानते हैं कि जनन की प्रक्रिया में मादा जनन तंत्र और पुरुष जनन तंत्र भाग लेते हैं । इनसे संबंधित सभी जानकारी नीचे दिए गए हैं।
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5. भग या वल्वा ( vulva)
- अंडाशय स्त्री जननांग का वह भाग है जिसमें अंडाणु (ova) विकसित होते हैं।
- जैसे पुरुष में एक जोड़ा वृषण पाया जाता है उसी तरह प्रत्येक स्त्री में एक जोड़ा अंडाशय पाया जाता है।
- प्रत्येक अंडाशय एक पतली, पेरिटोनियम की झिल्ली के द्वारा उदरगुहा की पृष्ठीय दीवार से जुड़ी होती है।
- प्रत्येक अंडाशय संयोजी ऊतक के एक आवरण ट्यूनिका एल्बुजिनिया से ढँका होता है। इस आवरण के नीचे जनन एपिथीलियम पाया जाता है जिससे अंडाणु (ova) विकसित होते हैं।
2. फैलोपिअन नलिका :-
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- ये एक चौड़ी नलिकाएँ हैं, इसकी संख्या प्रत्येक महिला में एक जोड़ी होती है।
- प्रत्येक फैलोपिअन नलिका का शीर्षभाग एक चौड़े कीप के समान होता है जो अंडाणु को फैलोपिअन नलिका में प्रवेश करने में सहायता करते हैं।
- फैलोपिअन नलिका की दीवार मांसल एवं संकुचनशील होती है। इसकी भीतरी सतह पर सीलिया लगी होती हैं, जो अंडाणु को फैलोपिअन नलिका में नीचे की ओर बढ़ने में सहायता देती है।
- इस नलिका के द्वारा अंडाणु गर्भाशय (uterus) में पहुँचते है।
3.गर्भाशय:-
चित्र में त्रिभुज की आकृति जैसा दिखने वाला गर्भाशय है।
निषेचन के बाद शुक्राणु और अंडाणु यहीं पहुंचता है और धीरे धीरे भूर्ण का विकास होता है।
- यह मोटी दीवार वाली पेशीय थैली के समान रचना है जो मूत्राशय तथा मलाशय के बीच श्रोणिगुहा में स्थित होती है।
- यह लगभग तिकोनी रचना है जिसका ऊपरी भाग ज्यादा चौड़ा होता है।
- अंडाशय उदरगुहा के निचले भाग में स्थित श्रोणिगुहा (pelvic cavity) में पाए जाते हैं।
- इसका उपरी भाग चौड़ा होता है। इसके ऊपरी भाग के दाएँ और बाएँ कोने से उस ओर की फैलोपिअन नलिका जुड़ी होती है।
- गर्भाशय की गुहा में ही भ्रूण (embryo) का विकास होता है।
- गर्भाशय सामान्य स्थिति में 7-8 cm लंबी होती है।
- परंतु, भ्रूण के विकास के समय यह बढ़ जाती है और गर्भ के आठवें महीने में लगभग 18-20 cm लंबी तथा अंडाकार हो जाती है।
- शिशु के जन्म के बाद यह पुनः छोटी हो जाती है, परंतु सामान्य स्थिति में न आकर उससे थोड़ी बड़ी रह जाती है।
- गर्भाशय का निचला
भाग सँकरा होता है। इसे ग्रीवा या सर्विक्स (cervix) कहते हैं। ग्रीवा नीचे की ओर योनि
(vagina) में खुलता है।
4.योनि: -
- यह एक पेशीय नली के समान रचना है।
- इसकी लंबाई 7-10 cm होती है।
- इसकी दीवार पेशी तथा तंतुमय संयोजी ऊतक की बनी होती है तथा यह फैलने योग्य होती है। यह बाहर की ओर एक छिद्र भग या वल्वा (vulva) के द्वारा खुलती है।
- पहली बार संभोग के समय या चोट आदि लगने से यह झिल्ली टूट जाती है। फिर दुबारा इसका निर्माण नहीं होता है।
- योनि संभोग या मैथुन (copulation) के समय नर के शिश्न (penis) को ग्रहण करती है जिससे स्खलित वीर्य मादा जननांग के अंदर पहुंचते है।
- जन्म के समय शिशु इसी रास्ते बाहर निकलता है। मासिक स्राव के भी बाहर निकलने का रास्ता यही है।
बाहर से देखने पर सबसे आगे वाला भाग ही वल्वा है।यह योनि के ठीक बाहर बाह्य जननेंद्रिय (external
genetilia) के रूप में स्थित होता है।
- संभोग के समय पुरुष का penis वल्वा में ही सर्वप्रथम परवेश करता है।
- संभोग के समय जब नर का वीर्य मादा की योनि में स्खलित ( ejaculate) होता है तब वीर्य में स्थित क्रियाशील शुक्राणु (नर युग्मक) पूँछ की गति की सहायता से गर्भाशय तथा फिर आगे फैलोपिअन नलिकाओं के अगले भाग में पहुँच जाते हैं।
- यहाँ तक कई शुक्राणु एक साथ पहुँचते हैं, परंतु उनमें से केवल एक शुक्राणु ही फैलोपिअन नलिका में पहुँचे अंडाणु (मादा युग्मक) के साथ संयोग करने में सफल हो पाता है।
- नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अंडाणु का संयोजन या संयुग्मन (fusion) ही निषेचन (fertilization) कहलाता है।
- बचे हुए शुक्राणु नष्ट हो जाते हैं। अधिकांश शुक्राणु फैलोपिअन नलिका में ऊपर की ओर गति करते समय ही नष्ट हो जाते हैं। फैलोपिअन नलिका में शुक्राणुओं की गति की दर लगभग 100 माइक्रॉन प्रति मिनट है।
- सामान्यतः शुक्राणु फैलोपिअन नलिका में करीब 12 घंटे तक जीवित रहते हैं। इसी अवधि के दौरान ये अंडाणु से संयोग कर सकते हैं।